Tuesday, September 4, 2012

दिल्ली दर्शन के बहाने

यूँ तो दिल्ली शुरू से ही दर्शनीय रहा है. कुछ अपने एतिहासिक इमारतों की भरमार की वजह से और कुछ अपने प्रशासनिक भवनो की वजह से भी .वैसे काफ़ी सारे बाग -बगीचे तो हैं ही साथ ही आधुनिक समय के अनुसार बनाए गये पर्यटक स्थल आपका मन मोह लेते हैं . पुरानी दिल्ली अभी भी आपको आपके छोटे शहरों की याद दिला देगी .वैसी ही तंग संकरी गलियाँ ,साधारण लोग .छोटी दुकाने ,गंदगी .बेहिसाब भीड़ और अनियंत्रित ट्रफ़िक .वो सब कुछ जिसके आप आदी हैं . नई दिल्ली का रूप ,अब काफ़ी कुछ ,तस्वीर मे दिखाई देती, विदेश जैसा दिखता है .खूब चौड़ी साफ-सुथरी सड़कें ,सड़कों की दोनो ओर हरियाली, रोशनी की जगमगाहट दिल्ली की जगमगाहट देख कर ,मुझे अपना बिहार याद आने लगता है जितनी बिजली की खपत एक मौल(साउथ एक्स.,जहाँ तीन आलीशान मौल एक साथ हैं )एक दिन मे करते होंगे ,मुझे लगता है मेरे पूरे भागलपुर शहर को उतनी ही बिजली मिले तो हम निहाल हों जाएँ .वहाँ हज़ारों विद्यार्थी लॅंप की धुंधली रोशनी मे पढ़ कर अपनी आखें फोड़ते हैं उद्योग -धंधे बंद हो गये हैं .यहाँ के सारे मौल फुल्ली एयर-कनडिज़ॅंड हैं! बिजली की इस अँधा-धुध बरबादी को देख कर मेरा तो दिल जलता है मैट्रो दिल्ली के लिए एक वरदान है .इसकी बनावट तो ,विश्व स्तर की है ही ,अभी तक इसका रख -रखाव ,व्यवस्था सूरक्क्छा लाजवाब है यह अपने गंतव्य तक जल्दी तो पहुँचता ही है साथ ही, ऑटो वालों,ट्रफ़िक-जाम प्रदूषण वग़ैरा से भी मुक्ति दिलाता है .मॅ तो भगवान से यही मनाउँगी की ऐसी ही व्यवस्था पूरे देश मे हो ताकि हम भी सुकून भरी यात्रा कर सकें . दिल्ली -दर्शन के दौरान मैने तो यही महसूस किया की ,दिल्ली बेशक देश का चेहरा है ,इसे सुंदर दिखना भी चाहिए .लेकिन कहीं इस चक्कर मे पूरा शरीर कुपोषण का शिकार जैसा न दिखने लगे

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