Saturday, January 26, 2013

आज का दिन ,हमारे लिए मायूसी ले कर आया .सुबह जैसे ही अख़बार खोला उसमे विश्व -विद्यालय के उन शिक्छकों की सूची थी जिन्हें प्रोन्नति मिली थी .उसमे इनका नाम नहीं था .हमने पैसे नहीं दिए थे ,इसलिए इस बात का अंदाज तो हमें पहले से था लेकिन एक उम्मीद थी की शायद बाकियों के साथ इन का प्रमोशन भी हो जाए .क्योंकि की चार नामों में तीन का जब हो गया तो इन्हें कैसे छोड़ देगा ?लेकिन ये घाघ वी ,सी .'होत ना आज्ञा बिनु पैसा रे 'पर अटल है .घूस दे कर प्रमोशन लेने को हमारी अंतरात्मा बिलकुल तैयार नहीं हो रही है .लेकिन बुरा तब लगता है जब लोग सहानुभूति दिखाते हुए घूस दे कर काम करवा लेने की नसीहत देने लगते हैं .और जिन्होंने बहती गंगा में हाथ धोया है वो कंजूस साबित करके मजे लेते हैं . इन से ज्यादा मै अपसेट हूँ .क्योकि शुरू -शुरू में जब रेट पचास हजार था तब मैंने ही उन्हें पैसे दे कर प्रमोशन खरीदने से मना किया था ,बच्चों ने भी भरपूर विरोघ किया कहा 'पापा हमें आपकी योग्यता पर गर्व है .एक कागज के टुकड़े पर ये लिख कर नहीं मिला तो न सही ' आपके ऐसा करने से हमें आत्म -ग्लानि होगी .ना हमारे पास उपरी आमदनी के इफरात पैसे हैं और ना डिग्री फर्जी है .फिर हम क्यों दें पैसे ? वैसे उन दिनों जब किसी काम से पटना जाना पड़ा तो हमने परिवार के बड़ों से भी सलाह ली .तभी सबों ने सलाह दी थी की ये आदमी बिना पैसों के किसी का काम नहीं करता है .मुजफ्फरपुर में इसका यही रेपुटेसन है .लेकिन इसी बीच बर्खास्तगी का ड्रामा हुआ .हमे लगा शायद कुछ अच्छा होगा। कोई भला आएगा .लेकिन सही है पैसे में बहुत दम है .सारा कुछ ' मैनेज'हो गया .सुनते हैं यही वापस आएगा .खैर ......जो होगा देखा जायेगा !

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