Wednesday, January 30, 2013
फिर बेतलवा डार पर
हे भगवान !ये क्या हो गया ? जशन का रसगुल्ला गले मे ही अटक गया . न उगलते बनता है न निगलते .छह के छ्ह हों वापस आ गये !अब पहले से अधिक ठसक से लौटे हैं मानो कह रहें हों, ''देखा,हमारी पहुंच कहाँ तक है?इधर हुआ ये की वी. सी . के जाते ही असन्तुस्तो ने बकायदा अखबारों मे उनके ''रेट''के भंडाफोड़ बयान दे डाला .अब बेचारों की जान साँसत मे है. उनपर तो वज्र गिरना तय है .पूरे विश्व -विद्यालय मे जोड़ -तोड की राजनीति चरम पर है ,देखना है की वे कैसे मॅनेज करते हैं. वैसे जिन लोगोने पैसे लगाये थे उन्हे विश्वास है की उनका काम जरूर हो जायेगा .आखिर फेयर डील का वाड़ाजो था .कुछ ईमानदार शिक्छक जिन्हों ने प्रोनत्ति.के लिये अभी तक घूस नही दी है वे चिंतित हैं की उन्हे भी शायद पैसे देने ही पडेंगे पैसों की राजनीति है .उपर से लेकर निचले स्तर तक बिना कुछ दिये काम नही होता है .विद्यार्थियों के भविषय का ईश्वर जाने
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