हमे माफ करना बिटिया, तू मर क्यों नहींजाती लाड़ो? लेकिन मादा जीन का जीवट वो मरी नहीं । तेरा मर जाना अच्छा है।क्या करोगी जिंदा रह कर।उन जख्मों की टीसें,क्या भूल पाओगी? इसकी क्या गारंटी है कि फिर कुछ नहीं होगा?
एक ही धरती,एक गगन। किसी के लिए ऐशगाह किसी के लिए कब्रगाह बन जाती है।हम किस जंगल में रह रहे हैं? हमारा पड़ोसी भूखा भेड़िया है ।घर में आस्तीन के सांप छुपे हैं इन के काटे का कोइ इलाज नहीं। इन पंक्तियों को लिखते हुए बराबर मन में ऐसा कह रहा है यह पंक्तियां कहीं लिखी पढ़ी गईं हैं । इनमें कोई नई बात नहीं है । हम अपनी लेखनी से भावनाओं का ज्वार ला सकते हैं । अपने तर्को से कड़ी से कड़ी सजा का कानून बनवा लेते हैं । हम उसे चौक चौराहे पर खुलेआम गोली मार देंगे ।
हमें कोई मतलब़़ नहीं वो किसी का बेटा है पति हो ,भाई हो । इतना सब करने के बावजूद घटनाएं रुक क्यों नहीं रही, बल्कि कड़ी सजा के डर से अपराधी निर्ममता से जान ले लेता है। ये तो उल्टा पड़ गया बलात्कार के बाद साक्ष्य मिटाने के लिए निर्मम हत्या तक ।
जब कोई समाधान न मिले तो उसे ईश्वर के भरोंसे छोड़ देना चाहिए। हे प्रभू जैसे तुमने पांचाली की लाज बचाई थी,अब हमारी भी लाज बचाना।
जिस योनि द्वार से तुम इस जग में आऐ हो ,उसके प्रति विवेक क्यों नही।
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