नमामि गंगे।
गंगा हमारी मां है, गंगा हमारी संस्कृति है,
आस्था है,जीवन दायिनी है। लेकिन ऐसा हो रहा है
इधर हमारे त्योहार शुरू हुए उधर गंगा की दुर्गति शुरू हुई। जिन भगीरथ मुनि में अपने अथक परिश्रम से इस पवित्र नदी को पृथ्वी पर लाए थे आज उसी गंगा नदी की दुर्गति देखकर यही मन में आता है ,हे मुनिवर आप कृपया अपनी गंगा को वापस ले जाइए ,उसकी इतनी दुर्गति हमसे देखी नहीं जाती।
हम लोग कभी-कभी गंगा स्नान को जाते हैं ।
लेकिन सच कहूं तो घिन आती है । गंगा तट, ' गंदा तट ' बन गया है। साफ पानी की तलाश में नाव से बीच गंगा में जाना पड़ता । वहां भी गंदगी है लेकिन थोड़ी कम ।
इन दिनो,गंगा मैली से और मैली होती जाती है । जिस गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कितने अथक प्रयास किये , आपने ,और हमने क्या किया उसके साथ ?कहने भर को उसे पवित्र माना लेकिन अपनी सारी गंदगी मल ,मूत्र ,आदमी, जानवर के शव ,घरों की गंदगी फक्ट्रियों का विषैला पानी ,अस्पतालों का कूड़ा ,क्या नही डाला और तो और गंदगी सभी धर्म के लोगों ने डाला होगा , पर हैरानी इस बात की है हिन्दू लोग जिनके लिए गंगा पूजनीय मानी जाती है ,
धार्मिक ग्रन्थों में लिखा गया है की गंगा मात्र एक बहती हुई धारा नही है वो तो पाप हरणी , कष्ट हरणी है| इस पवित्र नदी का महात्म्य इतना है की इसमें एक ही डूबकी काफी है सारे पाप धोने के लिए | इसकी कुछ बूंदों से सारा कुछ पवित्र हो जाता है |ऐसा होता है या नही लेकिन हिन्दुओं की इसमें आस्था बनी हुई है ,फिर क्यों इसे पवित्र रखने का प्रयास नही किया ?गंगा के किनारे बसने वाले शहरों ने तो और इसे डस्ट बिन बना डाला है | शहर के सारे नाले गंगा में गिरते हैं |चाहे अस्पताल का कूड़ा हो या फैक्ट्रियों का निश्र्जं |
पूजा के बाद अगले दिन निर्माल्य को पवित्र् स्थान में फेकने का रिवाज है ,पर गंगा पवित्र रही कहाँ ? यों अगर निर्माल्य फूल बेलपत्र हो तो थोड़ी मात्र में होता ,यहाँ तो पूजा का कलश अगरबत्ती के पैकेट ,केले का पेड़ ,वन्दनवार ढेर सारी सामग्री गंगा में डाल आते हैं | अपनी आस्था को इतना तो न बढाइये अगरबत्ती के पैकेट की , कोई गंगा में डालने की वस्तु है ?
सब कुछ सरकार के भरोसे मत छोड़िए ,ये मामला आपकी आस्था सेहत से जुड़ा है,इसे खुद सुधारिए क्या हर्ज है? वही मैं कर रही हूं।
गंगा हमारी मां है, गंगा हमारी संस्कृति है,
आस्था है,जीवन दायिनी है। लेकिन ऐसा हो रहा है
इधर हमारे त्योहार शुरू हुए उधर गंगा की दुर्गति शुरू हुई। जिन भगीरथ मुनि में अपने अथक परिश्रम से इस पवित्र नदी को पृथ्वी पर लाए थे आज उसी गंगा नदी की दुर्गति देखकर यही मन में आता है ,हे मुनिवर आप कृपया अपनी गंगा को वापस ले जाइए ,उसकी इतनी दुर्गति हमसे देखी नहीं जाती।
हम लोग कभी-कभी गंगा स्नान को जाते हैं ।
लेकिन सच कहूं तो घिन आती है । गंगा तट, ' गंदा तट ' बन गया है। साफ पानी की तलाश में नाव से बीच गंगा में जाना पड़ता । वहां भी गंदगी है लेकिन थोड़ी कम ।
इन दिनो,गंगा मैली से और मैली होती जाती है । जिस गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कितने अथक प्रयास किये , आपने ,और हमने क्या किया उसके साथ ?कहने भर को उसे पवित्र माना लेकिन अपनी सारी गंदगी मल ,मूत्र ,आदमी, जानवर के शव ,घरों की गंदगी फक्ट्रियों का विषैला पानी ,अस्पतालों का कूड़ा ,क्या नही डाला और तो और गंदगी सभी धर्म के लोगों ने डाला होगा , पर हैरानी इस बात की है हिन्दू लोग जिनके लिए गंगा पूजनीय मानी जाती है ,
धार्मिक ग्रन्थों में लिखा गया है की गंगा मात्र एक बहती हुई धारा नही है वो तो पाप हरणी , कष्ट हरणी है| इस पवित्र नदी का महात्म्य इतना है की इसमें एक ही डूबकी काफी है सारे पाप धोने के लिए | इसकी कुछ बूंदों से सारा कुछ पवित्र हो जाता है |ऐसा होता है या नही लेकिन हिन्दुओं की इसमें आस्था बनी हुई है ,फिर क्यों इसे पवित्र रखने का प्रयास नही किया ?गंगा के किनारे बसने वाले शहरों ने तो और इसे डस्ट बिन बना डाला है | शहर के सारे नाले गंगा में गिरते हैं |चाहे अस्पताल का कूड़ा हो या फैक्ट्रियों का निश्र्जं |
पूजा के बाद अगले दिन निर्माल्य को पवित्र् स्थान में फेकने का रिवाज है ,पर गंगा पवित्र रही कहाँ ? यों अगर निर्माल्य फूल बेलपत्र हो तो थोड़ी मात्र में होता ,यहाँ तो पूजा का कलश अगरबत्ती के पैकेट ,केले का पेड़ ,वन्दनवार ढेर सारी सामग्री गंगा में डाल आते हैं | अपनी आस्था को इतना तो न बढाइये अगरबत्ती के पैकेट की , कोई गंगा में डालने की वस्तु है ?
सब कुछ सरकार के भरोसे मत छोड़िए ,ये मामला आपकी आस्था सेहत से जुड़ा है,इसे खुद सुधारिए क्या हर्ज है? वही मैं कर रही हूं।
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