आज मैं मिश्राईन प्रसन्न नहीं लग रही थी , वैसे भोरे भोर मिश्राईन को खूब्बे मीठ्ठा चाय पिला दो तो वह प्रसन्न हो जाती हैं ।उनका कहना है भोर का चाय बॉडी के लिए पेट्रोल के समान है जब तक मीठा चाय बॉडी को नहीं मिलेगा गाड़ी स्टार्टे नहीं होगा ।
आज जब मिश्रा जी ,मॉर्निंग वॉक से लौटे मिश्राईनको गंभीर मुद्रा में पाया् जिस दिन से बेटा नन-बिहारी से सादी कर लिया है, मिश्रा जी सशंकित रहते हैं , कहीं सास बहू में तेरी- मेरी न ठन जाए ।बड़ी व्यग्रता से पूछा सब ठीक ठाक है न ? मिश्राईन बोली हां ठीक्के है। ठीक नहीं ,ठीक्के बोला गया है ,मतलब मामला गड़बड़ है। मिश्रा जी को झटका लगा , मिश्राईन से बोले अरे कुछ बोलबो तो करो ।मिश्राईन तमक के बोली , बहु परब करना चाहती है। जिद ठानले है, करबे करेगी।मिश्रा जी अकचका गऐ, बोले परब सब तो खत्म हो गया,अब दूगो परब बाकी है एक दिवाली , और एक ठो छठ परब।
मिश्राईन बोली ई सब नहीं , ई उ नन -बिहारी लोग का परब है । अरे ओही, चलनी से हुलकने वाला परब ।जब तक पति को उस चलनी से हुलक नही लेगी, व्रत नहीं तोड़े गी। मिश्रा जी बोले ओ उ सीनेमा वाला परब,अघ्छा तो हरजा का है? मिश्राईन बोली आप तो कुछ समझबे नहीं करते हैं।कुछुए दिन पहिले हम उसको वट सावित्री वाला परब पुजवाईए दिए हैं। जिसमें धगवा से पति को बांधा जाता है।अब फिर पति को धेरेगी ,अब एक्के आदमी को ,सब तरफ से छेका जाएगा तब तो पूरे पूरी उसी का हो जाएगा हमलोग के तरफ ताकबो नहीं करेगा। कहते-कहते मिश्राइन रोने लगी ,अब तो मिश्रा जी के हाथ पैर फूल गए समझ में नहीं आ रहा था करे तो क्या करें। बोले पहले तो रोना बंद करो, अब ज़रा सोच के बताओ तुम भी तो हमरी माई से उसका बेटा छीन ली हो ई तो शूरुए से होता आया है ,अब तो हम मां को फोनों फान कम्मे करते हैं ,दिन भर तुमरे में ओझराए रहते हैं ।सुन कर मिश्राइन झेंप गई,बोली आप ठिक्के कहते है। ए जी बजार से बहुरानी के लिए एक ठो नइका छलनी ले आइए । मिश्राइन खुश हुई।
आज जब मिश्रा जी ,मॉर्निंग वॉक से लौटे मिश्राईनको गंभीर मुद्रा में पाया् जिस दिन से बेटा नन-बिहारी से सादी कर लिया है, मिश्रा जी सशंकित रहते हैं , कहीं सास बहू में तेरी- मेरी न ठन जाए ।बड़ी व्यग्रता से पूछा सब ठीक ठाक है न ? मिश्राईन बोली हां ठीक्के है। ठीक नहीं ,ठीक्के बोला गया है ,मतलब मामला गड़बड़ है। मिश्रा जी को झटका लगा , मिश्राईन से बोले अरे कुछ बोलबो तो करो ।मिश्राईन तमक के बोली , बहु परब करना चाहती है। जिद ठानले है, करबे करेगी।मिश्रा जी अकचका गऐ, बोले परब सब तो खत्म हो गया,अब दूगो परब बाकी है एक दिवाली , और एक ठो छठ परब।
मिश्राईन बोली ई सब नहीं , ई उ नन -बिहारी लोग का परब है । अरे ओही, चलनी से हुलकने वाला परब ।जब तक पति को उस चलनी से हुलक नही लेगी, व्रत नहीं तोड़े गी। मिश्रा जी बोले ओ उ सीनेमा वाला परब,अघ्छा तो हरजा का है? मिश्राईन बोली आप तो कुछ समझबे नहीं करते हैं।कुछुए दिन पहिले हम उसको वट सावित्री वाला परब पुजवाईए दिए हैं। जिसमें धगवा से पति को बांधा जाता है।अब फिर पति को धेरेगी ,अब एक्के आदमी को ,सब तरफ से छेका जाएगा तब तो पूरे पूरी उसी का हो जाएगा हमलोग के तरफ ताकबो नहीं करेगा। कहते-कहते मिश्राइन रोने लगी ,अब तो मिश्रा जी के हाथ पैर फूल गए समझ में नहीं आ रहा था करे तो क्या करें। बोले पहले तो रोना बंद करो, अब ज़रा सोच के बताओ तुम भी तो हमरी माई से उसका बेटा छीन ली हो ई तो शूरुए से होता आया है ,अब तो हम मां को फोनों फान कम्मे करते हैं ,दिन भर तुमरे में ओझराए रहते हैं ।सुन कर मिश्राइन झेंप गई,बोली आप ठिक्के कहते है। ए जी बजार से बहुरानी के लिए एक ठो नइका छलनी ले आइए । मिश्राइन खुश हुई।
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