मच्छरों का नीर क्षीर विवेक।
संदर्भ ; शहर में डेंगू एवं मलेरिया टाइफाइड जैसे रोगों का फैलना।
सबसे पहले मैं इस शीर्षक के बारे में बता दूं ।किंवदंती है कि, सागर के राज हंसों' को यह ईश्वरीय गुण मिला है कि अगर उसके सामने पानी मिला हुआ दूध रखो तो वह उसमें से दूध पी लेता है पानी छोड़ देता है (काश यह गुण हमारे पास होता)।मुझे यह पता लगाना है कि क्या मच्छरों को भी यह गुण मिला है क्योंकि शहर में गंदगी भरी पड़ी है।जहां गंदगी है वह मलेरिया के मच्छर है जहां गंदगी नहीं है वहां डेंगू के मच्छर हैं । हम करें तो क्या करें? मच्छरों को मारने का काम नगर निगम का है , उसके पास छिड़काव के साधन (फागिंग मशीन )है लेकिन वह छिड़काव नहीं करता है।( v i p मोहल्लों में होता है)।आखिर क्यों ? तो क्या मच्छर उन्हें नहीं काटते हैं क्या मच्छरों को पता है की अमुक इंसान नगर निगम का अधिकारी है या ये उसके बाल बच्चे हैं ।सब मच्छर मिलकर फैसला करते हैं, चलो हम इन्हें नहीं काटते हैं ,क्योंकि यही हमारे प्राण रक्षक हैं।शायद उसके कर्मचारियों और उसके बच्चों को भी नहीं काटता होगा । पूरा शहर चाहता है मच्छर मारें जाएं , मच्छर मारने का आदेश जब तक अधिकारी नहीं देंगे तब तक कोई कुछ नहीं कर सकता है । अधिकारियों से मिलना दूभर है क्योंकि वे अक्सर मीटिंग में रहते हैं, इसलिए उनसे मिलने का काम नगर नगर निगम के कर्मचारियों को ही सौंपा जाए ।जब जब तक यह प्रक्रिया हो पूरी होगी तब तक क्या मच्छर भूखे पेट रहेंगे? मच्छरों के प्रकोप से बचना है तो खुद ही अपनी सुरक्षा का इंतजाम कर लें। कहते हैं नारियल तेल से डेंगू के मच्छर भड़कते हैं और, सरसों तेल से दूसरे मच्छर ।तब तक हम आप तेल लगाएं और मच्छरदानी में सोऐं। जान अपनी है, सरकार की नहीं ।।
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