Wednesday, August 25, 2021

चिंगारी

 कुछ खबरें जंगल की आग की तरफ फैलती है और मामला किसी की इज्जत का हो तो आग को और हवा मिल जाती है। शहर के एक प्रतिष्ठित   परिवार की लड़की को दिनदहाड़े अगवा कर लिया गया था।

 शहर में अफरा-तफरी का माहौल बन.गया था ।सड़क जाम ,पुतला दहन, गाड़ियों में तोड़फोड़ नारेबाजी ,की जा रही थी ।सबसे बुरा था उस लड़की के बारे में अनाप-शनाप की बेहूदा बातें ,मैं उस  लड़की के परिवार को काफी पहले से जानती थी। मुझे बेहद बुरा लग रहा था। अंततः लड़की घर वापस आ गई ।
मैं अपने आप को उनके यहां जाने से रोक नहीं पाई ।मैं मयूरी से मिलना चाहती थी क्योंकि उस प्यारी सी बच्ची के बारे में ऐसी अनर्गल बातें मेरे गले से उतर नहीं रही थी । लेकिन वह कहीं अंदर कमरे में थी उनके घर में अजीब तनावपूर्ण माहौल था ।जब मैंने मयूरी से मिलने की बात कही तो लगा जैसे उन्हें पसंद नहीं आया ।    फिर भी मुझे मयूरी कि कमरे में भेज दिया गया।
क्या तुम  गंदी लड़की हो ? मैंने सीधा ,उस से  उसकी आंखों में आंखें डाल कर पूछ डाला । उसकी आंखें डबडबा आई। उसे उम्मीद नहीं थी इस तरह के सीधे  सवालों की,फिर उसने मेरी तरफ.नजरेंं उठा कर देखा और आहिस्ते से कहा,आंटी आपने मुझ से कुछ पूछा तो सही,यहाँ कोई पूछता ही नही है।फिर उसने गहरी़ सांस लेकर कहा ,नही आंटी  ,अगर मैं ऐसी होती , तो फिर मैं  वापस क्यों आती ? मेरा सुंदर होना  मेरा गुनाह हो गया ।वो पापा के बिजनेस पार्नटर का बेटा  था।  उसने मुझे 5 मिनट के लिए बोल कर स्कूल गेट के बाहर बुलाया था सामने उसकी गाडी़ खडी़ थी वो खुले दरवाजे के पास खडा़ था उसने मुझे पास आंने को कहा जैसे ही मैं पास पहुंची मुझे एक झटके से गाड़ी मे बिठा लिया। गाडी़ तेज रफ्तार से निकल गई ।व़ो परचित था भौंचक्का थी इसलिए मैं कुछ नहीं कर पाई ।
कुछ दिनो पहले मैंने पापा को किसी से फोन पर बोलते सुना था, किसी को बर्बाद करने की धमकी दे रहे थे। उधर से क्या बोला था मैंने नहीं सुना
 उनके आपसी झगडे़ का अंजाम  थी यह घटना ।
मैंने मयूरी को बचपन से देखा था।मुझे बेहद अफसोस हो रहा था।लड़कियों को बदनाम करना कितना आसान होता है।उससे कुछ पूछा नही जाता है बल्कि लोग मनगढ़न्त बातों को चटकारे ले कर सुनते हैं और अगर कुछ ऊँच नीच हो गई तो उसकी हर गतिविधि को गलत नजरिये से देखा जाता है! ये बहुत बड़ी मानसिक प्रतारणा है
फिर उसने उसके अपने लोगों के रवैये की बात कही ,कहते कहते रो पडी़।
जिस दिन मुझे छुडा़ कर घर लाया गया, मैं बेहद खुश थी।
जैसे ही मैं गाडी़ से उतरी,सामने दादी दादा जी खड़े थे। मैं लपक कर उनके पैर छूने  आगे बढ़ी लेकिन उनकी तरफ से ना ही आशीर्वाद का हाथ बढ़ा ना एक शब्द निकला।पहले यही लोग आशीर्वाद  की झड़ी लगा देते थे, अजीब लगा। मम्मी ने गले लगाने के बदले झटके से मुझे खींच कर कमरे के अंदर कर लिया।न मुझ से कुछ कहा न पूछा,बस आँखों से आंसुओं का सैलाब  फूट पडा़ ।
पापा की आंखों मेंं पता नहीं क्या था,पर पहले जैसा कुछ नहीं था। मैंने गौर किया, मुझ से कुछ दूरी बना रहे थे।बस छुटका वैसा ही था।
पापा ने पिछले जन्मदिन पर स्मार्ट फोन दिया था । हमारा वॉट्सअप ग्रुप था, मुझे वीडियो गेम खेलना अच्छा लगता था ।मम्मी की डांट पड़ने पर छुप छुप कर मोबाईल से गेम खेलती थी।ऐसा मेरी उम्र के सभी करते हैं।लेकिन अब इसे लड़के से बात करने  से जोड़ दिया गया।  मुझे सजने संवरने का शौक था ,मम्मी मेरे लिए लेटेस्ट फैशन के कपडे़ खरीदती थी।वे अपनी सुंदर सलोनी गुडि़या सी बेटी को किसी से कमतर नहीं देखना चाहती थी।मुझे फैशनेबल बिगड़ी हुई लड़की समझ लिया गया। जिसे माँ ने बिगाड़ा है।
लेकिन ऐसी मैं अकेली  नहीं हूँ।  फिर मेरे साथ ऐसा हुआ तो मेरी क्या गलती? क्यो सब  कुछ बदला बदला सा है ।कुछ टटोलती सी आँखें।मानो कुछ ढूँढ रही  हो मम्मी प्यार जताती थी, लेकिन कमरे के अंदर, सब से छुपा कर।क्योंकी सब मान कर चलते हैं  लड़की मां की जिम्मेदारी होती है  मेरी मां चूक गई थी इसलिए अब मैं प्यार नही दुत्कार की हकदार थी।
मैं घर लौटने के लिये कितना बेताब थी।
रोती थी,गिड़गिड़ाती थी ,मैं ने खाना पीना छोड़ दिया था । कहती थी मेरे बगैर पापा मम्मी कभी  नहीं खाते हैं। मैं कैसे खाऊँ।अब मुझे अलग कमरे मे खाना दे जाते हैं ,लोगों की नजरों से बचाने की कोशिश की जाती है।मेरे लौट आने की खुशी किसी को नही थी।बल्कि एक मातम छाया रहता है ऐसा माहौल जिसमें न खुल कर मातम मना सकते हैं न खुशी। उधर वो आवारा ,चूंकि पापा ने केस उठा लिया था इसलिए उसकी ठसक बढ़ गई थी ,अब और चौड़ा  सीना करके बाईक से मुहल्ले का चक्कर काटता था।
हमे नीचा दिखाने के लिए।अजीब है हमारा समाज।मुझे घृणा हो गई है।समाज से और उससे भी ज्यादा घरवालों से ,वो  एक बार भी खुल के नहीं बोलते हैं ,कि मेरी बेटी चरित्रहीन  नहीं है,जो हुआ वो एक दुर्घटना थी।जो किसी के साथहो सकती है।
उनकी चुप्पी से लोगों को मौका मिल रहा है।
 पहले ऐसा समझती तो मैं अपने घर नही लौटती

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