Sunday, September 2, 2018

दलितों कि राजनीति..

अब बाबा अंबेदकर के प्रपोत्र  RSS पर प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं|  जबरन किसी का मुँह बंदकर या प्रतिबंधित कर  समस्या का समाधान हो जाएगा  ?  नही, ऐसा नही है|


बल्कि यह  एक ऐसी संस्था है ,जो अपने स्वंसेवकों को सार्वजनिक. सफाई की शिक्षा   देता है|चाहे अपना मल मूत्र हो या किसी और की| 

बात प्रतिबंध की नही प्रतिबद्धता की  है|

अगर आप सवर्ण हैैं और दलितों के बारे मे कुछ आँखों को खोलने वाले  मुुुुद्दों को  बताना  चाहते हैं तो यह बड़ा मुश्किल है |ना जाने कौन इसे  किस चश्मे से  पढे़गा  ,फिर आपका इतिहास,भूगोल खंगाला जाएगा |आपके इससे पहले के वक्तव्यों के कोटेशन निकाले जाएंगे और उन्हें बिना किसी प्रसंग ,उन टुकडों को उछाला जाएगा|  ये नेतागिरी चलाने के टोटके हैं | यही लोग  अगर ईमानदारी से अपने  समाज के लिए कुछ करते तो तस्वीर कुछ और होती| समाज मे जब तक आर्थिक समानता नहीं होगी ,समाज इसी तरह टुकड़ो मे बंटा रहेगा| अगर कोई चपरासी ब्राह्मण हो और अधिकारी भी ब्राह्मण हो तब भी उसके साथ अधिकारी चाय नही पीता| ये पैसों की अलिखित व्यवस्था है| कोइ  भी दलित मंत्री अधिकारी बनते हैं तो  सबसे पहले खुद के, फिर अपने रिश्तेदारों में रेवड़ीयां बांटते  हैं |जब तक उसके समाज की बारी आती है ,आते आते सत्ता हाथ से निकल जाती है|

एक वार जो सवर्णो के द्वारा शोषण का ढोल पीट दिया गया वो निरंतर  बजता ही जा रहा है|

अब उनका शोषण उनके समाज के लोग ही कर रहे हैं| उनके समाज के नेता जो मंत्री बने हैं| उन्होंने वर्ण व्यवस्था को सुधारने के लिए क्या ठोस काम किया? उनके घरों में मल मूत्र की टंकी कौन साफ करता है| दलित अफसरों के टॉयलेट कौन धोता है ?बाबा साहेब की मूर्तियों को जहाँ तहाँ लगवाने की बजाय उनके सुझाए सुधारों को लागू करवाते तो तस्वीर अब तक काफी सुधर गई होती| बाबू जगजीवन राम की बेटी के लाईफ सटाईल की पहुँच कितनो  तक है| दलित क्वीन ,मायावती जी के क्या कहने ,जितना धन हाथीयों की मूर्तियों मे लगाया है  ,उतने मे कई स्कूल खोले जा सकते थे| सवर्णों और दलितों में खाई शिक्षा की  है| अब जबकी हर सरकारें ,कानून,प्रसाशन  उनके उत्थान को कटिबद्ध है ,तो जरुरत जाग्रति की है|

एक और दलित नेता  ने मंत्री बनने के बाद वही सारे शौक पालने शुरु कर दिए जो अय्याश नेता करते हैं |उनकी  जेब मे सोने की कलम रहने लगी| इसके बदले हर दलित बच्चे के हाथों मे कलम थमाई होती ,  तो ना जाने कितने दलित बच्चों का जीवन सुधर गया होता |यह समाज के बनाए कुचक्रों का खेल है अगर इनमें शिक्षा का प्रसार होता तो यह भी उसी समाज के अंग होते क्योंकि शिक्षित रहने पर  उन्हें नौकरी मिलती ,उनका जीवन स्तर सुधरता |

आज के आधुनिक समय में  पैसे से इज्जत आती  है किसी के माथे पर उसकी जाति का नाम नहीं लिखा रहता  |लोग आपको आपकी भाषा,रहने के जीवन स्तर से पहचानते है|जब तक इस कुचक्र को उल्टा घुमा कर सुचक्र मे नही बदला जाएगा ये नेताओं के बनाए दलदल मे धंसते चले जाऐंगे |

No comments:

Post a Comment